रविवार, 21 दिसंबर 2008

पायलागी: आज की अवधी

२१-दिसम्बर-२००८: आज की अवधी
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पायलागी
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पैर छू कर बड़े बुजुर्गो और श्रेष्ट जनों को अभिवादन करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द.


पायलागी के अन्य रूप
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पालागी, पालगी


टिप्पणी:
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अवधी आम भाषा में इस शब्द का काफ़ी प्रचलन है, फिर भी मैंने 'पायलागी' से इस ब्लॉग का प्रारम्भ आप सब के अभिवादन के रूप में किया है. इस ब्लॉग में मैं अवधी के चुनिन्दा कुछ ऐसे शब्द प्रस्तुत करना चाहता हूँ जिनका प्रचलन काफ़ी सीमित है या फिर वो किसी विशेष सन्दर्भ में ही प्रयोग लिए जाते हैं इसलिए उनकी जानकारी आज की नई पीढी जो शहरों में बसी है उसको नही है.

7 टिप्‍पणियां:

  1. अपनी मां बोली का कोई जवाब नहीं
    खूब लिखें,अच्छा लिखें

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  2. बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  3. स्वागत है आपका ब्लॉग जानकारी पूर्ण है।

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  4. ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत ...... है .....

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  5. महज़ अलफाज़ से खिलवाड़ नहीं है कविता
    कोई पेशा ,कोई व्यवसाय नही है कविता ।
    कविता शौक से भी लिखने का काम नहीं
    इतनी सस्ती भी नहीं , इतनी बेदाम नहीं ।
    कविता इंसान के ह्रदय का उच्छ्वास है,
    मन की भीनी उमंग , मानवीय अहसास है ।
    महज़ अल्फाज़ से खिलवाड़ नही हैं कविता
    कोई पेशा , कोई व्यवसाय नहीं है कविता ॥

    कभी भी कविता विषय की मोहताज़ नहीं
    नयन नीर है कविता, राग -साज़ भी नहीं ।
    कभी कविता किसी अल्हड yauvan का नाज़ है
    कभी दुःख से भरी ह्रदय की आवाज है
    कभी धड़कन तो कभी लहू की रवानी है
    कभी रोटी की , कभी भूख की कहानी है ।
    महज़ अल्फाज़ से खिलवाड़ नहीं है कविता,
    कोई पेशा , कोई व्यवसाय नहीं है कविता ॥

    मुफलिस ज़िस्म का उघडा बदन है कभी
    बेकफन लाश पर चदता हुआ कफ़न है कभी ।
    बेबस इंसान का भीगा हुआ नयन है कभी,
    सर्दीली रात में ठिठुरता हुआ तन है कभी ।
    कविता बहती हुई आंखों में चिपका पीप है ,
    कविता दूर नहीं कहीं, इंसान के समीप हैं ।
    महज़ अल्फाज़ से खिलवाड़ नहीं है कविता,
    कोई पेशा, कोई व्यवसाय नहीं है कविता ॥

    KAVI DEEPAK SHARMA
    http://www.kavideepaksharma.co.in
    http://Shayardeepaksharma.blogspot.com
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  6. उत्साह वर्धन के लिए आप सभी को धन्यवाद.
    आपके सहयोग से मैं निश्चित ही अपनी बात बहुत सारे लोगों तक पहुँचा सकूँगा. अपना स्नेह ऐसे ही बनाये रखियेगा.

    @ई-गुरु राजीव:
    वर्ड वेरिफिकेशन (Word Verification) कैसे हटायें ये बताने के लिए आपको विशेष धन्यवाद. आपके निर्देशों के सहयोग से मैंने वर्ड वेरिफिकेशन हटा दिया है.

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  7. हमें पूर्वांचल नहीं अवध चाहिए... जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश के चार खंड होने वाले है॥ उससे यह मालुम होने लगा है। की उत्तर प्रदेश के टुकड़े न हो तो अच्छा होगा। जैसे की आप सुबह जब मै अखबार पढ़ा तो उसमे लिखा था की इलाहबाद ,प्रतापगढ़,फ़तेह पुर ये सब पूर्वांचल में आयेगे॥ ये बात मेरे समझ में नहीं आ रही है। क्यों की इलाहबाद ,फतेहपुर। प्रतापगढ़, इन सब की बोलिया अवधी है । इस लिए इन जिलो को अवध में सम्लित किया जाना चाहिए। वैसे जब से थोड़ा भोजपुरी का उत्थान होने लगा है हमारी अवधी भाषा विलुप्त के कगार में आके खड़ी है। क्यों की हमारे लोगो के जिलो में अभूत से कलाकार.खिलाडी है। न उनको अभी तवज्जो मिल रही है । और न बाद में मिलने की संभावना रहेगी। क्यों वैसे हम गीत लिखते है अवधी और हिंदी में लेकिन मै १० साल से कोशिस कर रहा की कोई सिंगर मेरा गीत गाये। लेकिन हमें अधिकतर यही कहा जाता है। की हम अवधी की जगह भोजपुरी के लिखे वैसे ये तीनो जिले गरीब रेखा नीचे ही आते होगे। अ गर ये पूर्वांचल में सम्मलित किये गए तो निश्चित ही ..इअके दिन बुरे आ जायेगे। इस सब से निवेदन है की आप लोग कोसिस करिए की अगर उत्तर प्रदेश कर बटवारा होता है । तो हमें अवध चाहिए... वैसे भी हम लोग अवध के वासी है । और अवध में ही रहना पसंद करेगे। वैसे पहले भी हमारे यहाँ के राजाओ का नाम अवध या अवदेश । और अभी भी हम लोग उत्तर प्रदेश के बाद भी अवध likhate hai...

    धन्यवाद॥

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